अभिनय इनका चल गया, बदल दिया परिवेश;
बदल दिया परिवेश, नकल फिल्मों की करके;
खान-पान, परिधान, यहां सब कुछ फिल्मों से;
कर दहिया में वास, देखती ऐसे नेता ;
नेता यहां न एक, बन चुके सब अभिनेता। (1)
कुदरत की माया अजब , सिखा रही यह खेल;
दोनों पाले खुद रहो, नहीं किसी से मेल ;
नहीं किसी से मेल, वैरागी बनना होगा;
भीतर का सब ज्ञान, कोरोना सबको देगा;
कर दहिया में वास, सदा से अपनी फिदरत;
सदा अकेली रही, आज कहती जो कुदरत ।(2)
नफरत से नफ़रत बढ़े, बढ़े प्रेम से प्रेम;
नफरत करनी छोड़ दो, करके पक्का नेम;
करके पक्का नेम, तभी विकसित हो पायें;
वरना इस घृणा से, खुद घृणित कहलायें ;
कर दहिया में वास, जगत को जाना कुदरत;
सब उसकी संतान, कहो किससे हो नफरत ।(3)
आभार आपका आदरणीय बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार आपका आदरणीय
जवाब देंहटाएंवाह सरोज बहन बहुत सटीक कुण्डलियाँ आज के परिप्रेक्ष्य पर प्रहार करती।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
वाह दीदी तीन कुंडलियाँ तीनों सार्थक |नेता तो सदा के अभिनेता हैं | पहले वालों में कुछ नैतिकता बची थी अब वालों की अलोप हो गयी |कोरोना जीवन का सबसे बड़ा सबक लेकर आया है अज्ञानी समझत नाही | यदि सब एक ईश्वर एक इंसान को मान लें तो रामराज्य ही आ जाए | तीनों कुंडलियाँ एक से बढ़कर एक | वाह !!!!!!
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