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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास,
एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास;
मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे,
अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;


सोमवार, 16 नवंबर 2020

कुण्डलिया

भाव नहीं भाषा नहीं, न ही छंद विधान,
अंधकार प्रतीक बिन तुकबंदी का ज्ञान;
तुकबंदी का ज्ञान पटक कर हाथ सुनाते,
मिल जाता है मंच, कवि जी खूब कहलाते;
वाहवाही मिलती वहां, रहता नहीं अभाव,
घिसे पिटे से चुटकुले, देते अच्छा भाव ।

शनिवार, 14 नवंबर 2020

कुण्डलिया

हम पर मैं भारी पड़ा, चढ़ गया मैं का रंग,
मैं के कारण दीखते, सबके न्यारे ढ़ंग ;
सबके न्यारे ढ़ंग , कौन यहां किसे सुहाता,
मधुर मधुर सुना तान , काम कोई पड़ जाता;
दोरंगी जग चाल, दिखाती अपना दम खम,
मैं मैं मैं मैं शेष रही, भूले सब हम हम ।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

कुण्डलिया

संस्कृति कायम रहे, मैंने दीवाली आज,
बीस बीस में हो गये, कैसे कैसे काज ;
कैसे कैसे काज कोरोना का हंगामा,
राजा तक भी चोर आज दुनिया ने माना;
भूख बीमारी बढ़ चली, बढ़ी खूब अपकीर्ति,
त्योहारों का देश है, बचा रहे संस्कृति ।

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

कुण्डलिया

ध्यान लगाकर देख ले, इस जग का व्यवहार,
नहीं प्रेम का भाव है, सब करते व्यापार;
सब करते व्यापार, अर्थ आंखों के सम्मुख,
बिना अर्थ की बात, बात सब रही निरर्थक;
एक दूजे को दे रहे, देख देख धन मान,
अर्थ बिना यश न मिले, इतना रख ले ध्यान ।

शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

कुण्डलिया

लाख टके की नौकरी, करी चाकरी खूब,
धन में खेला खेल तू, मन पर चढ़ गई धूल;
मन पर चढ़ गई धूल , धूल को कौन हटाये,
पैसा तेरे पास , प्यार नजदीक न आये;
पैसा पैसा दीखता, नहीं दीखती शाख ,
हटकर चलते लोग हैं, करी कमाई लाख।

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

कुण्डलिया

चिंतन मंथन कर रहा, बात न आई हाथ,
इतना अब तू जान ले, समय नहीं है साथ;
समय नहीं है साथ, कौन मार्ग बतलाये,
जिस पर है विश्वास, वही तुझको भटकाये;
समय समय की बात, समय करवाता नृतन,
देख समय की चाल , छोड़ कर सारा चिंतन ।


मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

कुण्डलिया

माता तो माता रहे, बनता पूत कपूत,
भाव भावना दूर धर, बनता ऐसा भूत;
बनता ऐसा भूत , बात अपनी मनवाता,
दो कौड़ी का पूत, मात को आंख दिखाता;
कैसे बनते भाव, पूत बैरी बन जाता,
तो भी मांगे खैर, बनी माता तो माता ।

चिंतन

बुधवार, 23 सितंबर 2020

कुण्डलिया

चिड़िया भूखी मर रहीं, मौज मनाते मोर,
चौकीदारी जो करें, खुद ही बनता चोर ;
खुद ही बनता चोर , मोर को खूब चुगाता,
छोटी-छोटी चिड़ियाओं को खूब सताता ;
कर भारत में वास , सूंघ जादू की पुड़िया,
बन जायेगा मोर , भले कोई हो चिड़िया ।

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;