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रविवार, 23 अगस्त 2020

कुण्डलिया

पहले हम गांधी बने, लेकर चरखा हाथ,
पुनः हजामत छोड़ कर, बने रवीन्द्र नाथ;
बने रवीन्द्र नाथ, अभी हम मोर चुगाते,
फूटी जिनकी आंख, प्रशंसा उनसे पाते;
कर दहिया में वास, काम बुद्धि से ले ले,
डिजिटल नकली चित्र, बहुत देखे हैं पहले ।

शनिवार, 22 अगस्त 2020

कुण्डलिया

तन और मन का जोड़ कर, दे कुदरत से जोड़,
सच मानों हे मानुषा, होगा तू बेजोड़;
होगा तू बेजोड़, कष्ट सब दूर हटेगा ;
बन जाये समभाव, कष्ट सब आप कटेगा;
कर दहिया में वास , अगर जाता दोहरापन,
अध्यात्म की राह , जुड़े कुदरत से मन-तन ।

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

कुण्डलिया

लोक तंत्र को कर रहे, नेता आज हलाल,
लोक खड़ा हो देखता, करता नहीं मलाल;
करता नहीं मलाल, पेट की चिंता भारी ,
छूट चुके सब काम, लोक की यह लाचारी;
बुद्धि जीवी कर रहे , देख देख कर शोक,
मुट्ठी भर ही शेष हैं, शेष यहां सब लोक ।

शनिवार, 15 अगस्त 2020

कुण्डलिया

नियति ने कोमल रची, यह नारी की जात ,
तन से भी कोमल बने, मन के सब जज्बात;
मन के सब जज्बात , सहारा इसको चाहता,
वरना कठिन कठोर समय इस पर छा जाता;
कर दहिया में वास, पुरुष से बने सुगति ,
वरना रहती नहीं नार की अपनी नियति ।

बुधवार, 5 अगस्त 2020

कुण्डलिया

बाल्मिक ने रच दिया, एक सुंदर सा काव्य;
भाव लोककल्याण का, चरित एक सम्भाव्य;
चरित एक सम्भाव्य पथिक उत्तम मार्ग का;
राज-समाज सब त्याग, करे हित जो सब ही का;
तुलसी ने अपने समय, लिख दिया राम चरित ;
कवि कल्पना छंद कथा, रामायण बाल्मिक।

शनिवार, 1 अगस्त 2020

कुण्डलीयां

सबला बनने की ललक , कैसा चढ़ा बुखार;
पूरक बन पैदा हुए, दुनियावीं व्यवहार ;
दुनियावीं व्यवहार, कर्म दोनों का न्यारा;
कर्म किए बिना नहीं यहां चल सकता चारा;
कर दहिया में वास, नहीं रह पाये अबला;
मिले पति का प्यार जिसे, वह खुद ही सबला ।

मातृशक्ति सशक्त हो, बात चली यह खूब;
हर नुक्कड़ हर चौंक पर, मची हुई है धूम;
मची हुई है धूम, नहीं अबला रह पाये;
सम्भवतः यह शब्द कोष से ही मिट जाये;
कर दहिया में वास, फिरेगी नर की दृष्टि;
बस तब सबला बन पायेगी मातृशक्ति ।


कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;