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शनिवार, 15 अगस्त 2020

कुण्डलिया

नियति ने कोमल रची, यह नारी की जात ,
तन से भी कोमल बने, मन के सब जज्बात;
मन के सब जज्बात , सहारा इसको चाहता,
वरना कठिन कठोर समय इस पर छा जाता;
कर दहिया में वास, पुरुष से बने सुगति ,
वरना रहती नहीं नार की अपनी नियति ।

3 टिप्‍पणियां:

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;