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मंगलवार, 18 अगस्त 2020

कुण्डलिया

लोक तंत्र को कर रहे, नेता आज हलाल,
लोक खड़ा हो देखता, करता नहीं मलाल;
करता नहीं मलाल, पेट की चिंता भारी ,
छूट चुके सब काम, लोक की यह लाचारी;
बुद्धि जीवी कर रहे , देख देख कर शोक,
मुट्ठी भर ही शेष हैं, शेष यहां सब लोक ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  2. आदरणीया मैम ,
    देश की दुखद स्थिति पर बहुत ही सुंदर कटाक्ष। कम शब्दों में बहुत अधिक कह देने वाली कविता।
    लोक तंत्र केवल मतदान से नहीं होता, वास्तविक लोकतंत्र वह है जपो मतदान के बाद देखने को मिलता है।
    हमारे देश में कवल मुट्ठीभर नेता विसजेश हैं और बाकी जनता शेष है।
    सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार।
    आपसे अनुरोध है की कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिए अनुग्रहित रहूंगी।

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  3. छूट चुके सब काम, लोक की यह लाचारी.
    लोक की लाचारी ही शाश्वत है. और मनुष्य की चूक भी. चूक की हूक भी. विडंबना भारी.
    गागर में सागर.

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  4. तार्किक व गंभीर मुद्दा!
    लोकतंत्र में तंत्र तो है कदाचित लोक निर्विकार! सादर 

    एकलव्य 

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  5. लोकतंत्र की बदहाली पर गहरा कटाक्ष !

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yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;