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रविवार, 28 जून 2020

अपनापन

अपनी भाषा प्यारी होती, अपना पहनावा प्यारा;
रुचता अपना खान-पान और अपना देश लगे प्यारा;
अपनेपन का भाव जहां हो, सारे दुख मिट जाते हैं;
गैरों के अमृत के सम्मुख अपना नीर लगे प्यारा ।

अपनेपन के कारण ही तो सृष्टि चक्र सदा चलता;
नहीं बुरा कुछ भी लगता है, जब जब अपनापन मिलता;
अपनेपन का भाव जहां हो, सब मीठा बन जाता है;
अपनेपन के कारण मानव सारे कष्ट उठा जाता ।

खट्टी लस्सी अपनी मीठी,  दूध गैर का पानी है ;
यह अपनापन केवल, सारे जग की एक कहानी है;
इसी भाव से घर बनते हैं , यही राष्ट्र का निर्माता;
बनो हितैषी भारत मां के, दुनियां आनी जानी है ।

मूलभूत जो हर मानव की तीन जरुरत होती है ;
उनसे वंचित रहे न कोई, आह ! निर्धन की होती है;
अपनेपन का भाव बना कर, एक एक मानव के साथ;
मानव सा उनकोजीवन दो, यह मानवता होती है ।

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;