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शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

कुण्डलिया

लाख टके की नौकरी, करी चाकरी खूब,
धन में खेला खेल तू, मन पर चढ़ गई धूल;
मन पर चढ़ गई धूल , धूल को कौन हटाये,
पैसा तेरे पास , प्यार नजदीक न आये;
पैसा पैसा दीखता, नहीं दीखती शाख ,
हटकर चलते लोग हैं, करी कमाई लाख।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर कुण्डलिया।
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकानाएँ।

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  2. वाह!खरी खरी कहती सार्थक कुडली आदरणीय दीदी | आपका नया ब्लॉग मिल नहीं पाया | सादर --

    जवाब देंहटाएं

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;