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सोमवार, 16 नवंबर 2020

कुण्डलिया

भाव नहीं भाषा नहीं, न ही छंद विधान,
अंधकार प्रतीक बिन तुकबंदी का ज्ञान;
तुकबंदी का ज्ञान पटक कर हाथ सुनाते,
मिल जाता है मंच, कवि जी खूब कहलाते;
वाहवाही मिलती वहां, रहता नहीं अभाव,
घिसे पिटे से चुटकुले, देते अच्छा भाव ।

शनिवार, 14 नवंबर 2020

कुण्डलिया

हम पर मैं भारी पड़ा, चढ़ गया मैं का रंग,
मैं के कारण दीखते, सबके न्यारे ढ़ंग ;
सबके न्यारे ढ़ंग , कौन यहां किसे सुहाता,
मधुर मधुर सुना तान , काम कोई पड़ जाता;
दोरंगी जग चाल, दिखाती अपना दम खम,
मैं मैं मैं मैं शेष रही, भूले सब हम हम ।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

कुण्डलिया

संस्कृति कायम रहे, मैंने दीवाली आज,
बीस बीस में हो गये, कैसे कैसे काज ;
कैसे कैसे काज कोरोना का हंगामा,
राजा तक भी चोर आज दुनिया ने माना;
भूख बीमारी बढ़ चली, बढ़ी खूब अपकीर्ति,
त्योहारों का देश है, बचा रहे संस्कृति ।

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;