फ़ॉलोअर

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

कुण्डलिया

माता तो माता रहे, बनता पूत कपूत,
भाव भावना दूर धर, बनता ऐसा भूत;
बनता ऐसा भूत , बात अपनी मनवाता,
दो कौड़ी का पूत, मात को आंख दिखाता;
कैसे बनते भाव, पूत बैरी बन जाता,
तो भी मांगे खैर, बनी माता तो माता ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. जी दीदी , पूत कपूत हो जाते हैं पर माता कुमाता कभी नहीं हो सकती |सटीक कुंडली ! वाह !!!!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;