अपनी भाषा प्यारी होती, अपना पहनावा प्यारा;
रुचता अपना खान-पान और अपना देश लगे प्यारा;
अपनेपन का भाव जहां हो, सारे दुख मिट जाते हैं;
गैरों के अमृत के सम्मुख अपना नीर लगे प्यारा ।
अपनेपन के कारण ही तो सृष्टि चक्र सदा चलता;
नहीं बुरा कुछ भी लगता है, जब जब अपनापन मिलता;
अपनेपन का भाव जहां हो, सब मीठा बन जाता है;
अपनेपन के कारण मानव सारे कष्ट उठा जाता ।
खट्टी लस्सी अपनी मीठी, दूध गैर का पानी है ;
यह अपनापन केवल, सारे जग की एक कहानी है;
इसी भाव से घर बनते हैं , यही राष्ट्र का निर्माता;
बनो हितैषी भारत मां के, दुनियां आनी जानी है ।
मूलभूत जो हर मानव की तीन जरुरत होती है ;
उनसे वंचित रहे न कोई, आह ! निर्धन की होती है;
अपनेपन का भाव बना कर, एक एक मानव के साथ;
मानव सा उनकोजीवन दो, यह मानवता होती है ।
आदरणीय दीदी ,आपका ब्लॉग जगत में सादर, सस्नेह अभिनन्दन है | अपनी माटी और अपने संस्कारों से जुड़ा आपका लेखन ब्लॉग जगत को रुचिकर लगे और आप अलग अभिव्यक्ति की मौलिकता के साथ अपनी पहचान बनाएं मेरी यही दुआ है | माँ शारदे आपकी कलम की सार्थकता को विस्तार दे | मेरी शुभकामनाएं और बधाई | सादर
जवाब देंहटाएंअपनी भाषा प्यारी होती, अपना पहनावा प्यारा;
जवाब देंहटाएंरुचता अपना खान-पान और अपना देश लगे प्यारा;
अपनेपन का भाव जहां हो, सारे दुख मिट जाते हैं;
गैरों के अमृत के सम्मुख अपना नीर लगे प्यारा ।
सच में अपनी मिटटी और पानी की सुगंध ही अलग होती है जिसका मुकाबला कोई अमृत कर पाने में सक्षम नहीं | काश ! विदेशों को पलायन कर रहे युवा इस बात को समझ पाते और अपना जीवन अपनी मातृभूमि के लिए अर्पित करते | सार्थक और सुंदर प्रेरक रचना |