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बुधवार, 15 जुलाई 2020

तीन कुण्डली

प्राणनाथ, विनती करुं, करुं जोड़कर हाथ;
मन करता है पहाड़ की, सैर आपके साथ;
सैर आपके साथ, हमें अब पहाड़ दिखा दो;
तीन सौ सत्तर गई, अभी कश्मीर दिखा दो;
फुर्ति से तब गूगल खोला, सस्ते में था त्राण;
दिखा दिया कश्मीर हमें, अटके अटके प्राण ।(1)

कैसे बीता था रहा, यह सावन का मास ;
मन में उठी हिलोर अब, गाऊं बारह मास;
गाऊं बाहर मास , हिंडोले झूल नहीं हैं;
पल में जल करने वाली , न घटा कहीं हैं
आते रहते याद,  बीत गए सावन जैसे;
अब सावन का नाम, कहो ये सावन कैसे ।(2)

निश्छल जीवन हो जहां, वहां कैसा क्षोभ;
जैसा देखा कह दिया, परे समूचा रोग;
प्रेम समूचा रोग, नहीं निज-पर को गहता;
जहां दीखता रोग, साफ साफ सब कहता;
सुनो सुजन वह जन, वचनों पर रहे अटल;
सत्य का रक्षक सदा , रख जीवन निश्छल ।(3)


4 टिप्‍पणियां:

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  2. वाह दीदी ! बहुत भोली हैं आप गूगल पर ही देखकर मान गयी ? रोचक कुंडली !और दीदी आप तो गाँव में हो अभी वहां तो फिर भी सावन लगता होगा थोड़ा सावन जैसा ! पर , शहर में तो मुझे सालों बीत गए | लोकजीवन के वो रंग कहाँ खो गए ? दिल में हूक सी उठती है याद करके | सच्चाई पर अटल रहने वालों को कोई चिंता नहीं रहती बार- बार वाणी बदलने की | सुंदर सार्थक प्यारी कुंडलियाँ

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yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;