मन करता है पहाड़ की, सैर आपके साथ;
सैर आपके साथ, हमें अब पहाड़ दिखा दो;
तीन सौ सत्तर गई, अभी कश्मीर दिखा दो;
फुर्ति से तब गूगल खोला, सस्ते में था त्राण;
दिखा दिया कश्मीर हमें, अटके अटके प्राण ।(1)
कैसे बीता था रहा, यह सावन का मास ;
मन में उठी हिलोर अब, गाऊं बारह मास;
गाऊं बाहर मास , हिंडोले झूल नहीं हैं;
पल में जल करने वाली , न घटा कहीं हैं
आते रहते याद, बीत गए सावन जैसे;
अब सावन का नाम, कहो ये सावन कैसे ।(2)
निश्छल जीवन हो जहां, वहां कैसा क्षोभ;
जैसा देखा कह दिया, परे समूचा रोग;
प्रेम समूचा रोग, नहीं निज-पर को गहता;
जहां दीखता रोग, साफ साफ सब कहता;
सुनो सुजन वह जन, वचनों पर रहे अटल;
सत्य का रक्षक सदा , रख जीवन निश्छल ।(3)
बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका आदरणीय
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह दीदी ! बहुत भोली हैं आप गूगल पर ही देखकर मान गयी ? रोचक कुंडली !और दीदी आप तो गाँव में हो अभी वहां तो फिर भी सावन लगता होगा थोड़ा सावन जैसा ! पर , शहर में तो मुझे सालों बीत गए | लोकजीवन के वो रंग कहाँ खो गए ? दिल में हूक सी उठती है याद करके | सच्चाई पर अटल रहने वालों को कोई चिंता नहीं रहती बार- बार वाणी बदलने की | सुंदर सार्थक प्यारी कुंडलियाँ
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