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शनिवार, 11 जुलाई 2020

तीन कुण्डलियां

भाई भाई लड़ रहे, करें पड़ोसी मौज;
घुटने टेके गैर को, नहीं लाज का खोज;
नहीं लाज का खोज, अकल पर पत्थर भारी;
अपने ने अपने को दे दी, यह लाचारी;
करो प्रेम से वास, करो मत कभी लड़ाई;
हंसें पड़ोसी लोग ,लड़े जब भाई भाई ।(1)

उन्नीस तो उन्नीस रहा, बीस चार सौ बीस;
न जाने कब कब मिली, किसको क्या बख्शीश;
किसको क्या बख्शीश, कहीं सरकार गिराई ;
देकर कुछ बख्शीश आप दिल्ली जलवाई ;
महामारी आयात की, जिसकी ज्यादा टीस;
कुदरत सब कुछ देखती, रहे न वह उन्नीस ।(2)

रही अकेली झूठ कब, रखती संग में झुण्ड;
लोग झूठ के झुण्ड में , रहें मारते मुण्ड ;
रहें मारते मुण्ड , हारकर थक बैठे हैं ;
झूठे संग संग बैठ ,मलाई चख रहते हैं ;
हाल साल में जनता ने कितनी ही झूठ सही;
जादूगर का राज , आज यहां झूठी झूठ रही ।(3)

2 टिप्‍पणियां:

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;