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बुधवार, 8 जुलाई 2020

कर्म कामना

हे कर्म आनन्द दाता ! यह दया अब कीजिए;
न रहे बेकार कोई प्यार सबसे कीजिए ।

एक तेरे बिन नहीं मिलता जगत से प्यार है ,
काम से सब प्यार‌ करते यह जगत व्यवहार है;
काम बिन कैसे गुजारा, पेट सबका मांगता,
ताप-सर्दी से बचें, तन पर वसन मन मांगता ;
धूप बारिश रात का तम सह सके छत चाहिए,
नार घर की रह सके, एक कोठरी भी चाहिए ;
हो सके सब का गुजारा, न्याय ऐसा कीजिए,
न रहे बेकार कोई काम सबको दीजिए  ।

दोष सारे आदमी यह काम बिन पाता सदा,
न निकट हो आप जिसके वह निट्ठला सर्वदा;
झूठ चोरी और जारी अवगुणों में पड़ गया,
आपके बिन सद्गुणी बिन मौत के ही मर गया;
एक तू ईश्वर सभी का, कर्म यहां प्रधान है,
कर्म बिन होता यहां सबका सदा अपमान है;
अब दया कर पास सबके पहुंच कर कुछ कीजिए,
आपके संग से उठेंगे, साथ सबका दीजिए ;

हे कर्म आनन्द दाता, यह दया अब कीजिए,
न रहे बेकार कोई, प्यार सबसे कीजिए ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. जी नमस्ते ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११-०७-२०२०) को 'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- ३५६९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति सुंदर प्रार्थना मासी जी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;