न रहे बेकार कोई प्यार सबसे कीजिए ।
एक तेरे बिन नहीं मिलता जगत से प्यार है ,
काम से सब प्यार करते यह जगत व्यवहार है;
काम बिन कैसे गुजारा, पेट सबका मांगता,
ताप-सर्दी से बचें, तन पर वसन मन मांगता ;
धूप बारिश रात का तम सह सके छत चाहिए,
नार घर की रह सके, एक कोठरी भी चाहिए ;
हो सके सब का गुजारा, न्याय ऐसा कीजिए,
न रहे बेकार कोई काम सबको दीजिए ।
दोष सारे आदमी यह काम बिन पाता सदा,
न निकट हो आप जिसके वह निट्ठला सर्वदा;
झूठ चोरी और जारी अवगुणों में पड़ गया,
आपके बिन सद्गुणी बिन मौत के ही मर गया;
एक तू ईश्वर सभी का, कर्म यहां प्रधान है,
कर्म बिन होता यहां सबका सदा अपमान है;
अब दया कर पास सबके पहुंच कर कुछ कीजिए,
आपके संग से उठेंगे, साथ सबका दीजिए ;
हे कर्म आनन्द दाता, यह दया अब कीजिए,
न रहे बेकार कोई, प्यार सबसे कीजिए ।
बहुत सुन्दर गीतिका।
जवाब देंहटाएंआभार मान्यवर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११-०७-२०२०) को 'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- ३५६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति सुंदर प्रार्थना मासी जी।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत भाव पूर्ण सृजन ।
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