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बुधवार, 15 जुलाई 2020

तीन कुण्डली

कोयल कूकी आम पर, लटक गया जब बौर;
भ्रमर भी तो बौर पर , हो गया खूब विभोर ;
हो गया खूब विभोर, सुगंध लगी थी प्यारी ;
प्राकृतिक यह प्रेम,  भावना प्यारी प्यारी ;
सुनो सुजन अब बात, भाव कुदरत के कोमल;
नहीं समझता मनुज, समझते भ्रमर कोयल ।(1)
 
ज्ञानी से बन दे रहे, लेकर ज्ञान अनूप;
उल्टा सीधा जो मिला, लगे लुटाने खूब;
लगे लुटाने खूब, महिमा यह गुरुवर की;
पढ़कर पोथी चार, सुना दी शिष्यों को भी;
सुनो सुजन यह बात, ज्ञान भीतर से आता;
निपट निरक्षर भी कोई, तब ज्ञान सुनाता ।(2)

कुल्टा या फिर कुटिल-कटु, जिस घर बसती नार;
नाम न सुख संतोष का, अगला जन्म सम्भार;
अगला जन्म सम्भार, भार जीवन भर ढोना;
लिखा कर्म का लेख, व्यर्थ में कैसा रोना ;
सुनो सुजन यह बात, जन्म बीतेगा उल्टा ;
भुगत कर्मफल आप, नार तेरे घर कुल्टा ।

2 टिप्‍पणियां:

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;