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शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

हत्यारिन

हां, मैं हत्यारिन हूं
न जाने कब कब किसके अरमानों की
बेरहमी से हत्या की है मैंने
हत्या के लिए प्रयुक्त होने वाले हथियारों में
धारदार वाणी भी तो समाहित है न
शस्त्र से हत्या, 
हत्या का कंलक
केस
जेल
लेकिन वाणी से की जाने वाली हत्या
जिससे कोई मर जाता है , सदा सदा के लिए
टूट जाते हैं रिश्ते हमेशा के लिए
न केस न जेल न कोई कलंक
लगभग हर औरत बनती है हत्यारिन
जीवन काल में
उसे आना होता है पराये घर
निभाने होते हैं अनचाहे रिश्ते
या तो हत्या उसकी होती है
या उसे हत्यारिन बनना पड़ता है
तन की हत्या से मन की हत्या 
शायद अधिक पाप चढ़ाती है
हत्यारिन के सिर पर
मर जाता है मन किसी सास का
किसी बहु का
किसी पति का या किसी पत्नी का
जीवन का भार ढोना नियति बन जाती है
या आत्महत्या से की जाती है जीवन लीला समाप्त
क्या यह हत्या नहीं है कि हमारी वजह से
फांसी के फंदे पर झूल जाये कोई
या घुट-घुट कर जीने की लाचारी
न जाने कितने हत्यारे या हत्यारिन 
पाप मुक्त , हंसते खिलखिलाते
हत्या के जुर्म से बचें रहते हैं
हो सकता है हमने भी जाने अंजाने
हत्या की हो किसी अपने की, 
हमें ही नहीं पता, तो कानून को कैसे पता चलेगा
हत्यारिन खिलखिलाती रहेगी
हत्या होती रहेगी ।

1 टिप्पणी:

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;