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मंगलवार, 7 जुलाई 2020

संदेश

चिड़िया चहकी मेरे आंगन, दाना चुगती, गर्दन हिलती;
हमने तो खुश होकर देखा, , हमें देख फर फर कर उड़ती;
बैठ गई वह एक डाल पर चीं चीं करके लगी सुनाने ;
यदि नहीं तुम मानव होते, तुम्हें देखकर कभी न उड़ती ।

मैंने पूछा, क्या हमने मानव बनकर कुछ पाप किया है?
दाना पानी दान अनेकों, खूब पुण्य का काम किया है ?
चीं चीं चीं चीं लगी चिढ़ाने, छी:छी:छी:छी: सौंप रही थी,
बोली पुण्य कमाने खातिर, बस तुमने पाखण्ड किया है ।

मैं तो कुदरत की बेटी हूं, इसिलिये तो खुश रहती हूं;
दान पुण्य से दूर हमेशा , मस्त स्वयं में ही रहती हूं;
पैसे का लालच क्या होता, इन बातों से बड़ी दूर हूं,
नहीं जोड़ने की भी आदत , रोज कमाकर खा लेती हूं।

सबसे ज्यादा दुष्ट तुम्हीं हो, तुमसे डर कर रहना होता;
चीर फ़ाड़ सब कुछ खा लेते, या पिंजरे में रहना होता;
जीवन पर अधिकार हमारा, इसका तुमको ज्ञान न कोई;
तुमको बस जो भी मिल जाये, वह आधीन बनाना होता ।

जितने दोपाये धरती पर , सबको रोग भयंकर होता,
जोड़ तोड़ दिल तोड़ , लक्ष्मी प्रतिष्ठा का लालच होता;
बुद्धि सबसे ज्यादा देकर कुदरत ने कुछ दोष किया है,
इसिलिये हर एक दोपाया जीवन के सब आनन्द खोता ।




4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. "बोली पुण्य कमाने खातिर, बस तुमने पाखण्ड किया है।" - पक्षी के माध्यम से अनमोल वचन .. काश! मानव होने का मान हम सभी रख पाते ... अभी सावन में भी शाकाहारी होने का खूब पाखण्ड करते हैं हम मानव .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर सृजन मानव की अमानवीय प्रवृत्ति पर प्रहार करती कविता।

    जवाब देंहटाएं

yes

कुण्डलिया

खेतिहर ने रच दिया, एक नया इतिहास, एक एकता बन चुकी, मिलकर करें विकास; मिलकर करें विकास, नहीं मजदूर बनेंगे, अपनी भूमि पर, इच्छा से काश्त करेंगे ;